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हाईकोर्ट की पुरानी मांग फिर चल पड़ी है, अलग प्रदेश की मांग अभी ठंडी है जबकि एक तीर से ही दो बल्कि दस ‘शिकार’ हो सकते है! पुरानी जनचर्चा के निम्न बिन्दुओं पर एक नजर डालें –
• अलग राज्य बनने से सिर्फ पीठ नहीं बल्कि पूर्ण हाईकोर्ट की स्थापना स्वत: ही हो जायेगी.
• अलग डीजीपी, मुख्य सचिव, सीएम से लेकर हर इकाई के दो मुखिया बन जायेंगे.
• यानि सिर्फ न्याय ही नहीं कानून, शासन, राजनैतिक जिम्मेदारी आधी-2 और समय-संसाधनों का पूरा उपयोग.
• प.उ.प्र. का राजस्व या संसाधन पूर्वी उ.प्र. में लुटने से बचेगा, जैसे प.उ.प्र. में बिजली की यदि 15-20% चोरी होती होगी तो दबंगो के क्षेत्र पूर्वी उ.प्र. में 80-85% चोरी नहीं बल्कि डकैती होती है.
• पू.उ.प्र. का भाग बिहार जैसे विकासशील राज्य से मिलता है तो प.उ.प्रदेश का भाग दिल्ली एन.सी.आर. जैसे विकसित क्षेत्र से मिलता है.
• नयी विधान सभा में नए नियम प.उ.प्र. की धरती, संस्कृति की जरूरत के मुताबिक बनेंगे.
• …और भी बहुत कुछ. लेकिन राज्य के दो भाग होना जरुरी है या नहीं ये खुद से इन दो प्रश्न के बाद तय करिए –
(१) यदि आप उत्तर प्रदेश के बीचोंबीच किसी जनपद के निवासी है और आपकी बहन/बेटी के लिए पसंद के रिश्ते पू.उ.प्र. और प.उ.प्र. दोनों तरफ से हों तो आप किस ओर ब्याहना पसंद करेंगे?
(२) आपकी बहन/बेटी की उच्चशिक्षा अथवा बतौर बीटीसी शिक्षिका पू.उ.प्र. के जौनपुर, देवरिया, गोरखपुर अथवा प.उ.प्र.के आगरा, मथुरा, नॉएडा में चयन करना हो तो आप किधर चयन करेंगे?
…………..लेकिन इस बात से इंकार नहीं की ईमानदार इच्छाशक्ति के बगैर दुश्वारियां भी कम नहीं किन्तु चार बच्चों के पालन से दो कहीं ज्यादा बेहतर पल सकेंगे बस यही मंशा है उपरोक्त प्रस्ताव में.
– (शिब्बू आर्य, मथुरा)
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